उमड़ घुमड़ घनघोर घटा बन
जब घिर-घिर के आए बदरिया
गरज-गरज घन दिल दहलाए
सावन का संदेस सुनाए
कड़क-कड़क कर नाच गगन में
चमक दमक इठलाए बिजुरिया।
चारों ओर घिरे अँधियारा
जग से भाग छुपे उजियारा
सनन-सनन झकझोर पवन में
पाँवों में बल खाए घघरिया।
अंबर से अमृत जल बरसे
सूखी धरती का मन हरषे
सावन की रिमझिम बरखा में
तन से लिपटी जाए चुनरिया।
कण-कण में हरियाली लाए
तपते तन की प्यास बुझाए
बन-बन में नाचे मयूर
मधुबन में गाए रंगरसिया।
उमड़-घुमड़ घनघोर घटा बन
जब घिर-घिर के आए बदरिया।
- पुष्पा भार्गव
05 सितंबर 2005
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