सावन का बदरा
श्याम मनोहर रूप तुम्हारा
जीवन का उजियारा
गीतों भरी बाँसुरी तेरी
हृदय हमारा मतवारा
कितना तुमको चाहे जियरा
कैसे सब समझाएँ
दिन का चैन रात की निंदिया
बोल कहाँ हम पाएँ
पनघट पर बैठी सब सखियाँ
हमको देवें तानें
तेरी धुन में खोये हम उनकी
कोई बात ना मानें
खेल खेल में रूठे कान्हा
अब तो मान भी जाओ
मैं राधा दीवानी तेरी
क्यों हूँ यह आकर समझाओ
अनुराग के दीप जलाऊँ
खोलूँ पट पलकन के
कहो प्रिय कैसे बतलाऊँ
तुम्हीं मीत हो मन के
माथे का झूमर ना भावे
ना अँखियों का कज़रा
नैन बरसते रहा देख
निष्ठुर सावन का बदरा
- नीलम जैन
16 सितंबर 2001
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