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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

सावन और विरह

घन घन घन मेघा गरजे
छम छम कर बरखा बरसे
जलधि-जलधि हुई धरा
गोरी प्रेम बूँद को तरसे

फैली इंद्रधनुष की छटा
फिर कभी उठी काली घटा
मन पर छाई बदली ऐसी
कभी छिटके कभी बरसे

तपती धरा हुई शीतल
जाग उठी दूब हरी कोमल
बहे झरना निर्झर निर्मल
क्यों हुए कजरे नयन सजल

अँगार बदन प्यासी चितवन
भीगी रातें और दूर सजन
देख हर जीव युगल
गोरी पिया मिलन को तरसे

- सुमन कुमार घई
29 अगस्त 2001

  

सावन का बदरा

श्याम मनोहर रूप तुम्हारा
जीवन का उजियारा
गीतों भरी बाँसुरी तेरी
हृदय हमारा मतवारा

कितना तुमको चाहे जियरा
कैसे सब समझाएँ
दिन का चैन रात की निंदिया
बोल कहाँ हम पाएँ

पनघट पर बैठी सब सखियाँ
हमको देवें तानें
तेरी धुन में खोये हम उनकी
कोई बात ना मानें

खेल खेल में रूठे कान्हा
अब तो मान भी जाओ
मैं राधा दीवानी तेरी
क्यों हूँ यह आकर समझाओ

अनुराग के दीप जलाऊँ
खोलूँ पट पलकन के
कहो प्रिय कैसे बतलाऊँ
तुम्हीं मीत हो मन के

माथे का झूमर ना भावे
ना अँखियों का कज़रा
नैन बरसते रहा देख
निष्ठुर सावन का बदरा

- नीलम जैन
16 सितंबर 2001

 
 

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