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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

    बरखा की डोली

बरखा की डोली लिए, आए मेघ कहार
धरती माँ की गोद में, रिमझिम पड़ी फुहार

टॉर्च दिखाती दामिनी, लिए नगाड़े संग
पानी का मांजा लिए, बादल बने पतंग

बरखा रानी हो गई, सज धज कर तैयार
रंग-बिरंगी छतरियों का आया त्यौहार

छम छम छम करने लगे, यों बूँदों के साज़
ज्यों आँगन में नाचते, हों बिरजू महाराज

बदरी से मिलने चले, बादल भरे उमंग
श्वेत रंग काला हुआ, शक्ल हुई बदरंग

दुखिया छप्पर के तले, भीगा सारी रात
तन करके मेहमान-सी, घर आई बरसात

सोम रंग से भी बड़ा, पानी तेरा रंग
एक घूँट से धूप की, उतर गई सब भंग

सिंहासन बादल चढ़े, धूप हुई कंगाल
उछले-उछले गाँव में, घूम रहे हैं ताल

पिया बसे परदेस में, गोरी है बेचैन
सावन भादों बन गए, दो कजरारे नैन

छप्पर ने मुँह धो लिए, चमक उठी खपरैल
इक बारिश में धुल गया, मन का सारा मैल

सदियों से जाती रही, मैं सागर के पास
नदिया बोली मेघ से, आज बुझी है प्यास

पावस आई कट गई, फिर पतझड़ की नाक
सब पेड़ों ने पहन ली, हरी-हरी पोशाक

बच्चे बारिश देखकर, गए खुशी से फूल
'रेनी डे' -में हो गए, बंद सभी स्कूल

सुनकर बादल बूँद के, टूट गए संबंध
नदी तोड़ कर चल पड़ी, तट के सब अनुबंध

-सुनील जोगी
29 अगस्त 2005

  

बरखा ने हैं रंग
बिखेरे

बरखा ने रंग बिखेरे हैं
मेघ सूर्य को घेरे हैं
आतप से मुक्ति दिलाई है
कजरी ने चित्र उकेरे हैं।

सोंधी सुगंध की लहरें हैं
बदरा पेंगों पर ठहरे हैं
गुन-गुन करते गलियारों के
मनभावन चित्र सुनहरे हैं।

सृजनकरी ये बरखारानी
कोपल को सरसाए रानी
हर्ष विलास उदीपित करती
रिमझिम बरसे बरखारानी।

नदियों को आप्लावित कर
उर्वरा धरा को यह देती
नन्हें बीजों में भर अंगडाई
हरी भरी धरती कर देती।

खिल जाती खेतों की बाछें
गीत जगाती गीली माटी
प्यार दुलार सहज मन पनपे
सपन सकारे मृदुला माटी।

सूत्रधार सब त्योहारों की
चित्रकार मधुरिम भविष्य की
दानी है अनजानी बरखा
तृप्ति कथा है बौछारों की।

धनुराकृति मोरों का नर्तन
खेतों की बाली की थिरकन
कजरारे आँखों की चितवन
बरसे मेहा भीगे तन मन।

प्रणय निवेदन रीति दिखा
उत्सर्गित रंग बिखेरे हैं
जन-जन के मन की चाहत
ऋणी सभी हम तेरे तेरे हैं।

बरखा ने रंग बिखेरे हैं
कजरी ने चित्र उकेरे हैं
बदरा झूलों पर ठहरे हैं
मन भावन चित्र सुनहरे हैं।

- सुरेन्द्रनाथ मेहरोत्रा
29 अगस्त 2005

 

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