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वर्षा महोत्सव
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हम हैं, ख़याले यार है, जामुन का पेड़ है,
बारिश का इंतजार है, जामुन का पेड़ है।
अश्कों में भीग कर जो, मिठाता है और भी।
बूढ़ों का ये विचार है, जामुन का पेड़ है।
मिलते हैं चंदा साये, धुँधलकों में अब जिधर,
इक पीर का मज़ार है, जामुन का पेड़ है।
सावन का इश्तिहार है, उस शोख़ का बदन,
बिजली, घटा, मल्हार है, जामुन का पेड़ है।
सावन चढ़े पड़ोस के, दरिया के शोर में,
इक अजनबी का प्यार है, जामुन का पेड़ है।
मानेगी क्या उखाड़ के, जड़ से ही अब अरे,
इक संगदिल बयार है, जामुन का पेड़ है।
शब्दों की पींग मारते, झूलों का सिलसिला,
जिस सोच पर उधार है, जामुन का पेड़ है।
टापें बिछा रही हैं, अंधेरे में जामुनें,
इक तेज घुड़सवार है, जामुन का पेड़ है।
बैठा है तनहा बाग में, एक बूढ़ा आदमी,
सावन की यादगार है, जामुन का पेड़ है।
रस्ता न भूलिएगा, दुखों के मकान का,
जिस ओर को दुआर है, जामुन का पेड़ है।
- सूर्यभानु गुप्त
17 अगस्त 2001
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भीड़ मेघों की
घिर आए धुँधले सपन जैसे नयन में
भीड़ मेघों की लगी जुड़ने गगन में
दो घड़ी में ताप जग-भर का धुलेगा
फिर नया अध्याय जीवन का खुलेगा
जन्म जैसी गंध आती है चमन में
बज रही है मंद पायल-सी पवन में
नाचतीं कत्थक, सुनातीं कजलियाँ हैं
साँवले घन बीच गोरी बिजलियाँ हैं
रंग भरता जा रहा फिर से सपन में
भर गया है मधु मयूरी के वचन में
आ गई सजधज बरसने को फुहारें
छेड़ दीं अज्ञात गायक ने मल्हारें
पड़ रहीं हैं बूँद यों तपते सदन में
घुल रहा भागीरथी का जल हवन में
-रामावतार त्यागी
02 सितंबर 2005
घिर आई बरसात
घिर आई बरसात!
घन घिर आए,
घिर-घिर छाए,
छाए री, दिन रात
फिर आई बरसात!
पलकों पर जब पावस उतरे,
चूम पुतलियाँ यमुना लहरे,
लहर-लहर में झलमल-झलमल
श्यामल-श्यामल-गात
फिर आई बरसात!
पुरवैया में नैया डोले,
दूर पिया की बंसी बोले,
तीर-तंरग-धार-धाराधर
गूँजे सायं प्रात
फिर आई बरसात!
किस राधा की साध सम्हाले,
सुध मतवाली झूला डाले
साँस बनी लय, घन नूपुर-स्वर
नभ कदंब, तरु पात
फिर आई बरसात!
केदार नाथ मिश्र 'प्रभात'
2 सितंबर
2005
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