बीता बसंत गर्मी झुलसा चली गई
पुरवा से घनमंडप स्थिर उमसे आषाढ़
लहरीले पवन का झोका तिरछी बूँदो की बाढ़
धरणी पर हो रही सघन हरियाली की बरसात
नभ से बरसती सुरमई घटाएँ श्यामल धरा पर
सघन सौंदर्य का करती सृजन।
मनभाव सावन सुंदर समीर चहुँ ओर
अमराई को घेर कर नाच रहे मोर
साँझ की अरुणाई, फूलों की रंगीली छाया
प्रकृति मदमस्त हुई पी-पी सौरभ का प्याला
रस से मधुमय उसकी मद भरी मुस्कान
कानन नंदन हुआ, सुंदरता का कर रही बखान
गोधूलि का सहज प्रतिबिंब
करुण समय दिन की विदा का
किरणों से विलग अनुराग से लाल सूरज
चल दिया धीरे-धीरे
बादलों की गोद में।
-बृजेश शुक्ला
10 सितंबर 2005
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