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वर्षा महोत्सव

वर्षा मंगल
संकलन

मनभावन सावन

बीता बसंत गर्मी झुलसा चली गई
पुरवा से घनमंडप स्थिर उमसे आषाढ़
लहरीले पवन का झोका तिरछी बूँदो की बाढ़
धरणी पर हो रही सघन हरियाली की बरसात
नभ से बरसती सुरमई घटाएँ श्यामल धरा पर
सघन सौंदर्य का करती सृजन।

मनभाव सावन सुंदर समीर चहुँ ओर
अमराई को घेर कर नाच रहे मोर
साँझ की अरुणाई, फूलों की रंगीली छाया
प्रकृति मदमस्त हुई पी-पी सौरभ का प्याला
रस से मधुमय उसकी मद भरी मुस्कान
कानन नंदन हुआ, सुंदरता का कर रही बखान

गोधूलि का सहज प्रतिबिंब
करुण समय दिन की विदा का
किरणों से विलग अनुराग से लाल सूरज
चल दिया धीरे-धीरे
बादलों की गोद में।

-बृजेश शुक्ला
10 सितंबर 2005

  

बारिश में

याद बहुत आई
इस बार भी
घर की बारिश में
मन को मनाया तो बहुत
पर भर आईं
आखिर अँखियाँ बारिश में।

सखियाँ झूले
काग़ज़ की नावें
एक साथ ही जैसे
चले आए यादों में
नहीं रुक पाया बस
भर आया मन
इस बार भी बारिश में

मेंहदी भी नहीं रचती
हथेलियों में यहाँ जैसे
चूड़ियाँ भी कलाइयों में
सजती हैं कहाँ वैसे
बस बादल ही
बरसते हैं हर बार
यहाँ बारिश में।

क्या कहें?
होता है यहाँ
हर साल यही बारिश में

-सारिका
10 सितंबर 2005

 

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