|
कैसे कहूँ |
|
क्या कहूँ,
कैसे कहूँ कैसे यह नादानी हो गई
मौसमों से आज मेरी
छेड़खानी हो गई
सावनी बयार की
कैसी मन मर्जियाँ
उड़ने लगी हवाओं में
प्रीत की अर्ज़ियाँ
उलझ गई डोरियाँ, कुछ भी रुमानी हो गई
देखते देखते फिर इक कहानी हो गई
लाज की देहलीज पे
खनक गयी साँकलें
द्वार और दीवार में
गुफ़्तगू , अटकलें
झाँझरों की आज फिर
मन मानी हो गयी
अनलिखी अनकही, आज इक कहानी हो गई
छेड़ दिए मेघ ने
गीत मल्हार के
पनघटों पे राग थे
नेह मनुहार के
खुशबुएँ मली , देह रात रानी हो गयी
मौसमों से आज फिर छेड़खानी हो गयी
यह किस की बरज़ोरियां
घूँघटा सरक गया
देख रूप –रंग, चाँद
राह में अटक गया
चाँदनी रात की मेहरबानी हो गयी
धरा से आसमान तक, नई कहानी हो गई
मौसमों से आज मेरी छेड़खानी हो गई
- शशि पाधा
९ अगस्त २०२० |
|
| | | | | | |
|