सौंपती हूँ
आज तुमको ग्राम्य बाला!
घन बजाओ दुन्दुभी, अब घाम के दिन को विदा दो
स्वर्ण-मंडित बिजलियों को कर्ण-फूलों सा सजा लो
मंत्रोचारण, आहुति से नादमय कर दो शिवाला
सौंपती हूँ आज तुमको ग्राम्य बाला!
मटर, गन्ना, साग, सरसों, धान, गेहूँ, फल रसीले
दुग्ध की धारा बहे, हों पंचनद में हाथ गीले
अन्नपूर्णा! थाल उसके, दो सदा पहला निवाला
सौंपती हूँ आज तुमको ग्राम्य बाला!
राह दें जलकुम्भियाँ जब ताल में पग वो पखारे
रूढ़ियाँ, विश्वास आन्हर छू सकें न उसके द्वारे
भेंट में यथार्थ लाए, ज्ञान का बढ़ता उजाला
सौंपती हूँ आज तुमको ग्राम्य बाला!
मछलियाँ दो शांत जल में, छाँव सोनाली के झूमर
मीन-नयना सुन्दरी वो, स्वर्ण लट उसकी मनोहर
भारती! अंजन से अपने, दो चिबुक पे टीक काला
सौंपती हूँ आज तुमको ग्राम्य बाला!
ये विदा कैसी, हृदय से छब विदा होती नहीं है
मन बहुत होता व्यथित, आँखें सकुच रोती नहीं हैं
शेष स्मृति माधुर्य, किन्तु दृष्टि का रीता पियाला
सौंपती हूँ आज तुमको ग्राम्य बाला
- शार्दूला
नौगुजा
९ अगस्त २०२० |