छू आई बादल
के गाँव
बहुत दिनों के
बाद सखी री
उमड़ घुमड़ कर
गरजी बरसी
बीते मौसम में हो आई
धो आई मैं स्मृति के ठाँव
कुनमुन सी ये
धूप सुनहरी
बस इक क्षण की
बनी सहचरी
फिर पायल बन रुनझुन में ढल
सज गई दो सखियन के पाँव
मछली कंटक
फँसी मचलती
प्रीति डोर से
बंधी तड़पती
साजन जो बिछड़े इस सावन
हृदय प्राण सब लग गये दाँव
छू आई बादल के गाँव
- मानोशी
९ अगस्त २०२० |