भीगा भीगा मन डोल रहा

भीगा-भीगा मन डोल रहा
इस आंगन से उस आँगन

यादों की अंजुरी से फिसले
जाने कितने मीठे लम्हे
लम्हों में दादी-नानी है
किस्सों की अजब कहानी है
उन लम्हों में कितना कुछ है
मन खोज रहा है वो बचपन
भीगा-भीगा मन डोल रहा...

वो प्यारी तकरारें माँ से
वो झगड़े भाई-बहनों के
उन झगडों का सोंधापन है
गूँजा-गूँजा सा हर क्षण है
उन खट्टी-मीठी यादों में
सुधबुध भूला है ये तन-मन
भीगा-भीगा मन डोल रहा...

छुप-छुप मिलने के वो मौके
लगते ख़ुशबू के से झोंके
उन झोकों मेंं इक सिहरन है
मेंहदी का भी गीलापन है
उन मस्त हवाओं की सन-सन
मन ढूंढ रहा है वो सावन
भीगा-भीगा मन डोल रहा...

- ममता किरण
९ अगस्त २०२०

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