मन का लगा,
लगा रहने दो
थोड़ी देर दग़ा रहने दो
कल ही को यह टूटा तार बेसुरा कर कर
वीणा का सब राग चुरा कर ले जाएगा
मृदु संगीत नहीं गूँजेगा अन्तर्मन में
गहन विषाद बँधी तन्त्री में दे जाएगा
कैसे कहूँ - ठगा, दहने दो
थोड़ी देर दग़ा रहने दो....
मन का लगा, लगा रहने दो।
कल अम्बर के कँधे पर नदियाँ रोएँगीं
या पर्वत के चरणों को मल-मल धोएँगी
घाटी को विरागता का कलरव कोंचेगा
और शिला पर शीश पटकती क्या सोएँगी
झूठे सही, सगा, कहने दो
थोड़ी देर दग़ा रहने दो
मन का लगा, लगा रहने दो!
- आचार्य डॉ. कविता वाचक्नवी
९ अगस्त २०२० |