पावस के सब दिन

पावस के सब दिन, गिन-गिनकर बीत गये
पल-पल उँगली के पोरों पर
पर बीत गये

साँझ हुई फिर जला लिया दीपक उर में
देहरी पर बैठी न लगे मन अब घर में
साँसों की लौ रह-रह सहसा तेज़ हुई
आँखों की आँसू पावस की सेज हुई
ताकूँ पंथ न जाने किस पथ मीत गये
पल-पल उँगली के पोरों पर
पर बीत गये

यादों की बौछारों पर मन रीझ गया
काजल वाले जल से आँचल भीज गया
प्राणों पर निष्ठुर बिजली डोरे डाले
विचलित करते मन बरबस बादल काले
मैं हारी ये सारे विषधर जीत गये
पल-पल उँगली के पोरों पर
पर बीत गये

पथराये मन पर छाई दुःख की काई
धीरज कर पाँवों में फिर फिसलन आई
पलकों की चादर पर दृग आँसू टाँकें
उर की दीवारें मिलकर सिसकन साँसें
स्वर-लहरी में तड़पन भर-भर गीत गये
पल-पल उँगली के पोरों पर
पर बीत गये 

- भावना तिवारी

९ अगस्त २०२०

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