आ गई वर्षा सड़क
भरने लगी है
झुग्गियाँ चुपचाप
प्लास्टिक को लपेटे,
गठरियों-सी देह
कोने में समेटे,
शहर की रफ़्तार से
डरने लगी है
रात बारिश ने गज़ब का
कहर बरपा
बुझ रहा चुल्हा फफककर
और तड़पा
भूख आँतड़ियाँ कसे
मरने लगी है
गुदड़ियाँ पैबंद की
उधड़ी जहाँ से
कँपकपी मुहँजोर हो
उभरी वहाँ से
छत टपककर शोर
अब करने लगी है
- रजनी मोरवाल
२१ जुलाई २०१४