मौसम चोला बदल रहा हैं
बारिश नाच रही
छन छनसावन की पहली
बौछारें
सबके मन का ताप उतारें
बादल उमड़ रहे रह-रह कर
तेज हवाएँ मगन पुकारें
धुले हुए सब पेड़ खड़े हैं
चौड़ी सड़कों पर
तन तन
खिड़की पर बूँदें अटकी हैं
सुधियाँ दूर तलक भटकी हैं
आँगन के पानी में तिरती
नावें चलीं मगर अटकी हैं
पार उतरना कठिन नहीं है
दोहराएँगी ये
मन मन
बादल दूर तलक जाएँगे
घर-घर में जीवन लाएँगे
छुपे हुए छतरी में चेहरे
बौछारों से भीग जाएँगे
नंगे पाँवों दौड़ पड़ीं जो
खुशियाँ वारेंगी
जन जन
- पूर्णिमा वर्मन
२१ जुलाई २०१४