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सावन की रिमझिम के गीत
 

 

झूले की डोरी को
इठलाती गोरी को
साजन के आने की आस जब नहीं रही
सावन की रिम-झिम के गीत कहीं खो गए

छूटा जब अपना तो
टूटा जब सपना तो
बाँहों के घेरे में सिर्फ़ हवा रह गई
साँसों के धड़कन के गीत कहीं खो गए

क्या कोई मुट्ठी में जुगनू समेटे
चंदा और बदरी की लुका-छिपी देखे
आँगन से चौखट तक
चौखट से पनघट तक
बिजली के बल्बों की रौशनी बिखर गई
मावस के, पूनम के गीत कहीं खो गए

युग बीता नीम तले देखे चौपालें
चलते हैं लोग सिर्फ़ छुप-छुप के चालें
सूरज के जाते ही
संध्या गहराते ही
बस्ती में गूंजीं हथगोलों की आवाज़ें
पायल की रुन-झुन के गीत कहीं खो गए

कह दो कुछ देर रुकें मंडराती चीलें
हम कोई गैस-कांड होने तक जी लें
पूरब से पच्छिम तक
उत्तर से दक्खिन तक
हर तरफ़ हवाओं में ज़हरीली गैसें हैं
पुरवा की सरगम के गीत कहीं खो गए

- ओमप्रकाश यती
२१ जुलाई २०१४

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