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ये बारिश का जल
 

 

मुश्किल मुश्किल से पाया है
इक छोटा सा हल
रोको रोको बिछड़ न जाए
ये बारिश का जल

आज नहीं तो कल सुलझेगा
प्रश्न भला कब तक उलझेगा
धरती पर फिर से लौटेगा
मित्र! सुहाना पल

रूठे बादल मान गए हैं
बन अपने मेहमान गए हैं
जल्दी जल्दी देंगे हमको
वे मेहनत का फल

झीलों का कुछ चैन मिला है
भक्तों को उज्जैन मिला है
बूँद बूँद से घर भर देगा
मेघों का ये दल

प्यार भरा उनको खत लिखना
हरदम एक पिता सा दिखना
फिर पानी ऊपर लौटेगा
आज नहीं तो कल

- दिनेश प्रभात
२१ जुलाई २०१४

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