बरस रहे सावन के बादल
आज हमारे गाँव में
अम्मा फिसल गईं आँगने में
छटक गई खाने की थाली
हँसती हुई बहू दौड़ी तो
देने लगीं बहू को गाली
मना किया सौ बार मगर है
पहिया तेरे पाँव में
मेंड़ बाँधने हीरा निकले
लिये फावड़ा ओढ़े बोरा
खाद छींटती कमली भीगे
भीग रहा कमली का छोरा
गायें आकर खड़ी हो गईं
हैं बरगद की छाँव में
चले आ रहे लोग घाट पर
वर्षा थमी साँझ वेला है
सबको नदी पार जाना है
नागपंचमी का मेला है
पियरी पहने बहुएँ आकर
बैठ गई हैं नाव में
- अवध बिहारी श्रीवास्तव
२१ जुलाई २०१४