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कूँजों का कामराग
 

 

कूँजों का कामराग
सुन, सुन
नटखट ओ पगली
बरस, बरस बदली !

एक है कि प्रियवर
कईयों हैं तेरे
किस-किसको
सौंपती निशानी
बदल जाएँ गहने
साँझ और सवेरे
तेरे ही क्योंकर
सयानी
किसको दी नथनी
कहाँ गई हँसली !

तेरी घुमड़न पर
यहाँ नागमतियों के
अंग-अंग रतिरंग
हँसते हैं
तू जो मचलती है
यक्षों के सीनों पर
तड़क-तड़क
वज्र गिरा करते हैं
बौराया जिसने भी
गन्ध तेरी चख ली !

- अश्विनी कुमार विष्णु
२१ जुलाई २०१४

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