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उमग आती है धरती
 

 


उमग आती है धरती
जब पड़ती पहली फुहार
दादुर पपीहा और मोर
मिल गायें राग मल्हार


झूम के आयी बरखा
तुम बिन मन दरवेश
यक्ष नहीं कि भेजूँ
मैं मेघों से संदेश


झूम रही है धरती
झूम रहा है आसमान
बरस रहे हैं बादल
बूँदों ने रचा वितान


बादलों की ये ख़ुशी
ये धरती का आल्हाद
भाये न कुछ मुझको
बस आये तुम्हरी याद


बूँदों ने रचा वितान
वन में नाचें मोर
पपीहा भी पूछे मुझसे
कहाँ है पिऊ तोर

- उर्मिला शुक्ल
२८ जुलाई २०१४

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