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कितना अच्छा लगता
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कित्ता अच्छा लगता है
बादल बच्चा लगता है,
उजले धुले शंख सा सफेद खुले पंख सा
निर्मल, कोमल, चंचल, सरल, धवल,
निश्छल, अविरल, सबल, उज्जवल,
गगन की झील में
मगन कमल सा तिरता रहता है,
और हवा की ऊँगली पकड़ के
फिरता रहता रहता है,
कभी इधर कभी उधर उड़ता है
टूटता है बिखरता फिर जुड़ता है
कभी खरगोश सा कभी
मृग छौने सा
कभी संगमरमर के सुन्दर
खिलौने सा,
कपास सा कभी बर्फ सा
मोर सा तो कभी सर्प सा,
सूरज के मुँह पर
ढँक देता है अपनी हथेलियाँ
फिर धरती से
पूछता है धूप छाँव की पहेलियाँ,
अपने आप में व्यस्त,
भोला-मासूम मस्त
मन का सच्चा लगता है,
कित्ता अच्छा लगता है,
बादल बच्चा लगता है
- लक्ष्मीदत्त शर्मा
२८ जुलाई २०१४ |
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