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रिमझिम के बाद |
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मन आँगन की बारिश
बारिशों के मौसम में
जब कभी
चलते -चलते
उम्र के झरोखों से
देखती हूँ पीछे
तो दिखते हैं
वो अनगिनत कदम
और बीती हुई बारिशों के दिन!
हम दोनों भाई -बहन मिल
बंद कर छज्जे की नाली
जमा कर लेते
बारिश का पानी
रंग-बिरंगी कागज़ की नाव चलाते
और खुश होकर
बजाते ताली,
मुंडेर पे बैठी
भीगी, कंपकपाती गोरैया को
छुपा हाथों में
भीतर ले आते
और फिर खूब डाँटती नानी
वो जुलाई का महीना
फिर वही
बारिश और स्कूल के दिन
नई क्लास, नई किताबें
फिर भी करते पिता जी से
नए बस्ते, नयी बॉटल की ठिन-ठिन
सबसे अमिट है
सबसे मधुर है
सोलहवें बरस के बारिश के दिन
जब मन सिन्दूरी हो जाता
नज़रे तितलियों सी
इत-उत उड़ जाती
रिमझिम गिरती
बारिश की बूँदें
चेहरे को चूम जातीं
आज फिर
उन सभी यादों के संग
भीग रही हूँ, बारिश में
आज भी बदली की काली चूनर पर
बिजली की सजी किनारी है
बूँद-बूँद थिरक रही
मन मयूर के संग
और मनभावन
रिमझिम बारिश
हमको लगती प्यारी है!!
- आभा खरे
२८ जुलाई २०१४ |
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