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कैसा यह आषाढ़ |
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ईश्वर की लीला अगम, कैसा
यह आषाढ़
सूखा देखा है कहीं, और कहीं है बाढ़
सूखा बीता जेठ है, सूखा है आषाढ़
हलधर चाहे मेघ से, रहम नेह की बाढ़
मेघा दिखते ना कहीं तक तक सूखे नैन
सूरज छुप जा तू कहीं, मिले ह्रदय को चैन
हरियाली गायब हुई, गायब है बौछार
मोर नहीं है नाचता, कृषक बैठा हार
छलनी सीना जेठ ने, किया धरा को चीर
भूमिपुत्र है सोचता, कौन हरेगा पीर
सोंधी सोंधी महक से, माटी महके आज
बिन मेघा के नेह के, कैसे उगे अनाज
निद्रा से उठ मेघ ने, छेड़ी लम्बी तान
सारी धरती खिल उठी, तृप्त हुई कर पान
घनन घनन बदरा घिरे, ऋतु रानी जब आय
हरियाली की ओढ़नी, पहन धरा मुसकाय
कजरारे घन देख के झूमा उठा किसान
भर भर घट खाली करो, खूब उगेगी धान
घन की गगरी है भरी, देख किसान प्रसन्न
मेघों की बूँदें लगें ज्यों हो बरसा अन्न
पींगें हैं सजने लगी, गूँज उठे मल्हार
इंतजार गोरी करे, कर सोलह शृंगार
नैना तरसे हैं सजन ह्रदय हुआ बेचैन
सावन बीता जा रहा आ जा तर कर नैन
-सरिता भाटिया
२८ जुलाई २०१४ |
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