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श्रावण ऋतु की धार
 

 

श्रावण ऋतु की धार में, खुशियों का संसार,
महादेव को भा गए, विल्व पत्र के हार।
विल्व पत्र के हार, भाँग धतुरे की गोली,
सुनकर बम बम बोल, देव ने अँखियाँ खोलीं।
होता मधु कल्याण, भाव जब होता पावन,
हरियाली के साथ, झूमता गाता श्रावण।

धरती रानी सोहती, पहन हरित परिधान,
क्यारी क्यारी सज गए, सकल सलोने धान।
सकल सलोने धान, निहार कृषक-जिय हर्षा,
जुटा रही आहार, मस्त मतवाली वर्षा।
सावन की सौगात, सुता की गोदी भरती,
पहन हरित परिधान, सुहानी लगती धरती।

आमंत्रण हर बूँद में, भेज रहा है मेह,
सावन में आओ बहन, भर धागे में नेह।
भर धागे में नेह, तिलक की रोली लाना,
देकर आशिष आज, निहाल हमें कर जाना।
नम हैं मधु के नैन, बाँचती नेह निमंत्रण,
लख भावज का प्रेम, मान लेती आमंत्रण।

- ऋता शेखर 'मधु'
२८ जुलाई २०१४

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