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माटी की सोंधी महक
 

 

माटी की सोंधी महक, फैली नीम सुगंध।
पहली इस बौछार का, छंदों सा आनंद।

पुल टूटा बरसात में, कटे गाँव से गाँव।
नदी उफनती बीच में, रुके किनारे पाँव।

सुबह सुबह बरसात में, नदी बन गई राह।
बच्चे छपकी मारते, अम्मा रही बुलाय।

बारिश आई थम गई, फिर भी टपके नीर।
फिसलें बूँदें पात से, कहतीं अपनी पीर।

मेघ देख आकाश में, हर्षित हुआ किसान।
प्यास बुझेगी खेत की, होगा जब जलपान।

हर्षित हो कर कह रही, सावन की बरसात।
धरती ने पानी पिया, बिन जाने घन जात।

रोया मैं बरसात में, किसने जानी पीर।
आँसू हैं ये आँख के, या बरसाती नीर।

दमक दमक कर दामिनी, मेघों को जतलाय।
पानी में डूबी धरा, नभ का अक्स दिखाय।

रवि किरणों ने देख ली, पावस की बौछार।
पर्वत को पहना गई, इंद्रधनुष का हार।

मोर नाचता खेत में, टर्र टर्र की थाप।
हरियाली के नूर से, जीव भरें आलाप।

- ओम प्रकाश नौटियाल
२८ जुलाई २०१४

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