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बादल बरसें
 

 

बादल बरखें नेह के, धरा प्रफुल्लित होय।
हरित चूनरी ओढ़ के, मुदित प्रकृति मन होय।।

बरखा की बूँदें कहें, मुझको रखो सहेज।
व्यर्थ न बहने दो इसे, प्रभु ने दिया दहेज।।

जल को संचित कीजिए, ताल बाँध औ कूप।
साफ स्वच्छ इनको रखें, नहीं लगेगी धूप।।

नदी ताल औ बाँध हैं, जगती के अवतार।
इनका नित वंदन करें, हैं जीवन आधार।।

गंदे यदि ये हो गये, तो जीवन दुश्वार।
जल,थल, नभ-चर औ अचर, संकट बढ़ें हजार।।

जल जीवन मुस्कान है, और सभी हैं व्यर्थ।
इसके बिन सब सून है, समझो इसका अर्थ।।

ताल तलैया बावली, बनवाने का काम।
पुण्य कार्य करते रहे, पूर्वज अपने नाम।।

निर्मल जल पीते रहे, दुनिया के सब लोग।
नहीं किसी को तब हुआ, इससे कोई रोग।।

विवेक हीन मानव हुआ, कर बस्ती आबाद।
नदी सरोवर बावली, हुए सभी बरबाद।।

मनोज कुमार शुक्ल ‘‘मनोज’’
२८ जुलाई २०१४

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