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मेघ महल वर्षा भरे |
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मेघ महल वर्षा भरे, उतरे
धरती ओर।
घर आँगन महकें सभी, बूँदें करतीं शोर।
रिमझिम बूँदें झर रहीं, बजते सुन्दर साज।
घन-मृदंग संगत करे, टिप-टिप मृदु आवाज़।
शुष्क धरा को देख के, घन-घट छिड़कें नेह।
शस्य-श्यामला हो मही, अन्न भरे हों गेह।
सूरज गर्मी से तपे, वाष्प धरा दे भेज।
वह घट-मोती भेंट दे, आँचल भरा सहेज।
रिश्ता माटी से जुड़े, सोंधी महक बहाय।
सृष्टि हरित लहरा उठे, जब वर्षा ऋतु आय।
- ज्योतिर्मयी पंत
२८ जुलाई २०१४ |
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