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पावस बदले रंग
 

 

बदरा नभ पर देखती, प्रमुदित धरती होय
गात गात मुस्कात हैं, ग्रीष्म दिना जो रोय

तीन माह बरसात के, निश दिन पड़त फुहार
आँगन में अब बंद है, पोंछा और बुहार

मुख पर वर्षा बूँद हैं, मानिक, मुक्ता, हीर
पर विरहन को देत हैं, पिय बिछुड़न की पीर

प्यास, प्यास बस प्यास है, पावस बदले रंग
दरस परस बस चाहते, अंग-अंग अरु अंग

सीली लकड़ी ना बरे, चूल्हा ताप न पाय
फूँक फूँक आँखी झरे, रोटी बेढ़न जाय

- अनिल वर्मा
२८ जुलाई २०१४

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