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पवन के संग भीगे पात
 

 

पवन के संग भीगे पात गाते गीत हैं वंदन।
सुहानी आ रही बरखा करें सब मिल के अभिनंदन।

रहे थे फूल पौधे सब के सब गुमसुम से मुरझाये।
नहा के इन फुहारों में महक फैलाता अब चंदन।

जमी दरकी मची त्राही बिना जल जीव संकट में।
बुझी अब प्यास सब जग की धरा का मिट गया क्रंदन।

बहुत अंगार बरसा के धरा दिनकर तपाई थी।
मिला अवसर जो बादल को सभी वन बन गये नंदन।

सभी के मन मयूरों से हैं नाचे इन बहारों में।
पपीहा गा रहा पीहू कहाँ हो नंद के नंदन।

सीमा हरि शर्मा
२८ जुलाई २०१४

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