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शुभ वर्षा
 

 

शुभ वर्षा से चैन मिला, जन-जन मन भीगा।
घन बरसे दिन रैन शहर का जीवन भीगा।

सड़कों पर चल पड़े निकल छाते बहूरंगी,
कागज़ नैया संग, तैरता बचपन भीगा।

मानसून पर मुग्ध हुईं पेड़ों की पाँतें,
नीड़ हुए जल मग्न, खगों का आँगन भीगा।

नदिया भी मिलने आई बढ़ मैदानों से,
साथ घाट का छोड़, ओढ़कर दामन भीगा।

चलीं तरुणियाँ शृंगारित हो पर्व मनाने,
बादल ने की छेड़, नैन का आँजन भीगा।

उमड़ा जन-सैलाब देखने वन-बागों में,
मन भावन चितचोर, मोर का नर्तन भीगा।

आसमान के बीच गर्जना सुन मेघों की,
हुआ अचंभित इन्द्र, जब उसका आसन भीगा।

बारिश ने बिन भेद भिगोया सबको लेकिन,
अस्त-व्यस्त हर गाँव, शहर हर बन-ठन भीगा।

पावस का हर साल ‘कल्पना’ प्यार मिले यूँ,
धुआँ-धार आषाढ़ और हो सावन भीगा।

कल्पना रामानी
२८ जुलाई २०१४

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