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रात बारिश
 

 

रात बारिश में झर गये पत्ते
सारे आंगन में भर गये पत्ते

पेड़ सिर पर बिठाए रखते थे
ताश बन कर बिखर गये पत्ते

धूप, बारिश, हवा, बरफ, बिजली
झेल सबका क़हर गये पत्ते

कौन हरियालियों की बात करे
पी के पीला ज़हर गये पत्ते

सहमी-सहमी सी डालियाँ चुप हैं
किससे पूछें किधर गये पत्ते

ठूँठ जंगल में राह तकता है
किस शहर में ठहर गये पत्ते

शाख़ फिर-फिर जवान होती है
इसका ऐलान कर गये पत्ते !

- धनञ्जय सिंह
२८ जुलाई २०१४

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