स्याह आसमान
बादलों के भार से
झुका - झुका
आशा की बिजलियाँ
चमकती रहीं लगातार
गरजते रहे मेघ पर
बरसे नहीं
तेज आँधी में उड़ गये
आश्वासनों की तरह
मैं देख रही हूँ दूर
समन्दर में
विलीन होती बूँदें और
अपने गाँव के
सूखते तालाब को
समन्दर में समाती ही
जा रही हैं बूँदें और
तालाब सूखता
जा रहा है निरंतर
- उर्मिला शुक्ला
३० जुलाई २०१२
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