टल गई बारिश

वर्षा मंगल
 

हाथ फिर अपने मल गयी बारिश
मुझको छूते ही जल गयी बारिश

दूर वीरान सी हवेली को
कैसे धोकर निकल गयी बारिश

इस ज़मीं के लिबास को देखो
धानी रंग में बदल गयी बारिश

अपने घर -बार जो गवां बैठे
उन सभी को तो खल गयी बारिश

छंट गयी बदली धूप सी चमकी
ऐसा लगता है टल गयी बारिश

देखो क्या क्या बहा के ले जाए
आज हद्द से निकल गयी बारिश

धूप की आग में जली दिन भर
फिर तो घुटनों के बल गयी बारिश

जिसकी जिसकी भी जो समस्या थी
कर के उन सबका हल गयी बारिश

-सिया सचदेव
३० जुलाई २०१२

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