थोथे लगते आज सब, मौसम के अनुमान
बरखा होगी जब कहें, दिखा साफ असमाऩ
दिखा साफ असमान, मौसम करे ढीठायी
गरमी रही सताय, शरद देरी से आयी
कहे सत्य कविराय, गया चढ़ मौसम मत्थे
चकमा बरखा देत, लगे मानक सब थोथे
कातर सी नदियां लगें, मंथर उनकी चाल
गहरी झीलें लग रही, जैसे छिछली थाल
जैसे छिछली थाल, हाल तलाव का कैसा
धन अभाव में दीन, लगे इक साहू जैसा
कहे सत्य कविराय, न पूछो नाले पोखर
पावस बाट निहारत निस दिन आँखें कातर
बरखा बिन चिंतित सभी, शहर नगर घर गांव
बिन पानी कैसे चले, जीवन की यह नांव
जीवन की यह नांव, शहर जल संकट छाया
डूबा कर्ज किसान, ठगा अपने को पाया
कहे सत्य कविराय, जगत हम सबने परखा
निसर्ग सुरक्षित जहाँ, वहाँ पर होती बरखा
सूखे खेत किसान के, भूल गये सब थाट
सूखे सूखे से लगें, हाट बाट घट घाट
हाट बाट घट घाट, कमी बिजली की खलती
जल आपुरती घटी, नीर की हुयी कटौती
कहे सत्य कविराय, लगे सावन पल रूखे
संचय जल का करो, हरित पुनि होंगे सूखे
-सत्यनारायण सिंह
३० जुलाई २०१२ |