कैसे चहके प्रेम चिरैया
तपते रेगिस्तानों में
अब तो बरसो नेह बदरिया
रिश्तों के खलिहानों में
धन वैभव की बिजली चमकी
भूली बातें ज्ञान धरम की
माया हर चौराहे मन को
कथा सुनाती दिशा भरम की
काश पारखी नज़र देख ले
शाप छुपे वरदानों में
बंजर है ममता का सीना
नयी लहर ने आँचल छीना
आज़ादी और मनमानी में
एक ज़रा सा पर्दा झीना
कैसे फूल खिलेंगे कोमल
स्वारथ के वीरानों में
अहम् भरे झोंके झुलसाते
सूख रहे सब दिल के नाते
बंटवारे के बोझ तले ही
मुखिया के कंधे झुक जाते
उफन रहा लालच का सागर
छेद हुए जलयानों में
-संध्या सिंह
३० जुलाई २०१२
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