ग़मों का बोझ
बढ़ाने को आ गई बारिश ,
हमारी जान जलाने को आ गई बारिश ।
किसी की याद को हमनें भुला के रखा था,
उसी की याद दिलाने को आ गई बारिश ।
जमीं को कितने अजब ज़ख्म दे गया सूरज,
फिर उनकी टीस बढ़ाने को आ गई बारिश ।
किताबे दिल पे तेरा नाम लिखा था हमनें ,
उसी के हर्फ़ मिटाने को आ गई बारिश ।
अभी तो “आरसी” आँखों में नमी बाकी थी.
हमारी आँख भिगाने को आ गई बारिश ।
- आर० सी० शर्मा “आरसी”
३० जुलाई २०१२ |