घुमड़ घुमड़
घन आ गये नभ में फिर से आज
मधुर मधुर बजने लगे मन वीणा के साल
मन वीणा के साज खूब पानी बरसेगा
बिजली के संग बादल भी जमकर बरसेगा
कहते बुद्धिमान खूब बरसो रे बादल
हर प्यासे की प्यास बुझाओ "ऊपर के जल"
नल में पानी आ गया सुखी हुआ संसार
फिर से चालू हो गया दुनिया का व्यापार
दुनिया का व्यापार अरे ओ पानी राजा
सब प्यासे ओंठों की आकर प्यास बुझा जा
कहती है जग रीति कठिन है कितना पानी
'उतरा पानी' बन जाती है एक
निशानी
अब जल से बुझती नहीं ढीठ कंठ की प्यास
पीने को चाहे लहू खाने को जन मांस
खाने को जन मांस नाश्ते में संगीने
और लंच में देने को वे गोली बीने
कहते हैं अब लोग डिनर में खाओ अणुबम
नहीं रहेगा भूख प्यास से मरने का गम
पके और गिरने लगे इस मौसम के आम
पर दिन दिन बढ़ने लगे हर गुठली के दाम
हर गुठली के दाम कुर्सियाँ चूस रहे हैं
अब टेबिल के अंग अंग ले घूस रहे हैं
सच तो अब यह बात घूस दस्तूर हो गया
सपना गांधी वाला चकनाचूर हो गया
-प्रभु दयाल
३० जुलाई २०१२ |