जगा रहे हो सावन

वर्षा मंगल
 

तुम आते न गगन में
बस जाते हो मन में

लहर लहर आ जाती
कली कली में सिहरन
कसते कसते सारे
खुल खुल जाते बंधन
जगा रहे हो सावन
तन मन कौन सपन में

एक अकेला जादू
कितने रंग बिखेरे
अंग अंग अनंग से
छलते चतुर चितेरे।
दामिनी का संदेशा
छुपा छुपा तड़पन में।

दरशन पा रोम रोम
पागल बनबन गाता
शायद सबसे बडा़ यहाँ
विकल प्यास का नाता।
कितना रस अन्तर में
कितना नेह नयन में।

निर्मला जोशी
३० जुलाई २०१२

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