घिर आई सावन
घटा, झर-झर-झरती आज
भीगा -भीगा मन हुआ, उर में बजते साज
रिमझिम पायल पहनकर, मेघा करते नृत्य
घन में बिजुरी छिप गई, दिखा जगत लालित्य
नन्ही बूँदें बरसतीं, घटा घिरी घनघोर
बिजुरी चम-चम चमकती, मोर मचाए शोर
घन बिच चमके बीजुरी, मन बिच उठती हूक
सुन-सुन जियरा तरसता, कोयल की-सी कूक
सावन भादों बरसते, बदरा दिन औ' रात
जिया पिया सँग ही गया, कैसे खोलूँ बात
रिमझिम-रिमझिम बरसते, देखो मेघा आज
मन के भीतर बज उठे, मूक सुरीले साज
मन तरसा, बरसा बहुत, लगी झड़ी घनघोर
दरस, परस, संसर्ग से, भीगी मन की कोर
-डॉ. मीना अग्रवाल
३० जुलाई २०१२ |