बूँदों ने
पुरवाइ को, मिलकर दी आवाज़।
उत्सव है उत्सर्ग का, छेड़ दिलों का साज़।।
धरती हँसकर पूछती, क्या लाये उपहार।
बादल ने इतना कहा, तन-मन देंगे वार।।
पत्ते पत्ते का हुआ, पुलकित हर्षित गात।
धरती ने फिर भेंट की, सौरभ की सौगात।।
मेघा ने ये क्या कहा, बहा नयन से नीर।
विरहिन सी थमती नहीं, अब नदिया की पीर।।
फूल कली से कह गये, रखना इतना मान।
बिन देखे होती रहे, खुश्बू से पहचान।।
-ज्योत्सना शर्मा
३० जुलाई २०१२ |