धरा
सुगन्धित हो उठे, पहली बूँदें पाय
सूखी नदिया सर सभी, उमगित हों लहराय
चोंच खोल के ताकते, पाखी नित आकास
चातक, मोर पपीहरा, लिए दरस की आस
नाचें कूदें, फिसल कर, भीगें थिरकें पाँव
कागज नैया में भरें, ले खुशियाँ बे भाव
वर्षा ही शीतल करे, शुष्क धरा का ताप
बढ़े विरह की वेदना, सावन में अनुताप
वर्षा देवी कर दया, खेतों उगे अनाज
कर जोड़े विनती करे, सारा कृषक समाज
झीनी सी चादर तने, बिंदु बूँद झलकाय
छम छम कर नाचे कभी, पवन संग लहराय
-ज्योतिर्मयी पंत
३० जुलाई २०१२ |