बूँदों के तीर

वर्षा मंगल
 

बादल ने
छोड़ दिये बूँदों के तीर
ग्रीषम का बिंध गया शरीर

अलसायी दूब नेली
धीमी अँगड़ाई
कोंपल का गात कँपा
थर थर थर्राई
पल भर में बदले
हालात सभी वन के
दुबके से दादुर भी
निकले तन तन के
दूर हुई पलभर में
जगती की पीर

नन्हा-सा बीज
छतरी लेकर आया
भीगी हवा ने
मल्हार राग गाया
पत्तों पर
लिखे पत्र, बूँदों ने बाँचे
सुधि-बुधि खो
मन-मानस
पहरों तक नाचे
कोटर के सुग्गे को
भा गई कुटीर

-डा० जगदीश व्योम
३० जुलाई २०१२

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