बादल जब
ताकता है, धरती को -
तब धरती की प्यास
शिद्दत से बढ़ जाती है, और
पिता, ताकने लगते हैं -
बादल को, प्यासी धरती को
हल, बैल, और बीज के कोठार को
लकिन
तभी, गरज उठती हैं - इकीस तोपें
महामहिम के स्वागत में,
और, बादल जा छिपते हैं-
रायेसीना के पीछे,
पिता, ताकते रह जाते हैं,
इस ताक-झाँक में-
सारा परिदृश्य-
मार्मिक बन जाता है,
और तोपों की गूँज,
पिता की आँखों को-
पनिया जाती है
बादल, धरती, हल, बैल-
बीज का कोठार,
और इन सब के साथ-
पिता के सपने-
धुँधला जाते हैं
-भोलानाथ त्यागी
३० जुलाई २०१२ |