सावन में कल
कल बहे, करती नदियाँ शोर
मानव मन यों झूमता, नाचे तट पर मोर
झरने भी झर झर बहें, कानन गूँजे शोर
अँगड़ाई ले कामिनी, ज्यूँ पतंग बिनु डोर
जल भर कर बादल चले, भई घटा घनघोर
दमकत ऐसे दामिनी, हुई रात ही भोर
धरती पर यों छा गयी, हरियाली चहुँ ओर
पुलकित मानव मन भरे, झूमत झूम हिलोर
बगियन में झूले पड़े, लम्बी लम्बी डोर
सखियाँ झूलें संग में, धरे साँवरे छोर
-अशोक रक्ताले
३० जुलाई २०१२ |