आए काले
बादल घिर घिर
सागर से गागर को भर भर
जंगल जंगल पर्वत पर्वत
सावन में घन बरसे झर झर
कौंधे जब जब चपला नभ में
तन्हा तन्हा काँपूँ थ र थ र
हर सू रंग बिरंगे छाते
मन को भाते दिलकश मंज़र
नभ में निकला इंद्रधनुष भी
सतरंगी ये कितना सुंदर
फूट रही है कोमल कोपल
हरयाली में बदला पतझर
आते जाते दूर गगन में
जब तब काले मेघ निरंतर
खुश हैं जल से भरे हुए सब
नदियां नाले झरने पोखर
थोड़ी सी आहट होते ही
नैना जाते हैं देहरी पर
ऐसे मौसम में आ जाओ
अच्छा लगता तुम से मिल कर
अजय अज्ञात
३० जुलाई २०१२ |