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शतबार नमन!
गणतंत्र-जाह्नवी-भागीरथ
बापू, तुमको शतबार नमन!
जब भारत में दानव-दल की घनघोर घटा छाई थी,
दुष्ट फिरंगी के जुल्मों से जब मानवता अकुलाई थी,
था हिंद-भूमि में सर्वव्याप्त गौरांग पिशाचों का नर्तन,
भुखमरी-गरीबी, बीमारी, असहाय अनाथों का क्रंदन।
तब भारत के उद्धार हेतु,
था जन्म लिया तुम ने मोहन,
बापू तुमको शतबार नमन!
जो राम विजय का नायक था, जीवन का संबल बना लिया,
आराध्य-वेद को साधक ने मन के मंदिर में बिठा लिया,
कामना-हीन हो कर्म करो भगवद्गीता का कर्मयोग,
जीवन का इक अध्याय बना, कर दिए समन्वित योग-भोग!
कर लाठी, लंगोटी पहने,
चादर ओढ़े, कंकाल बदन,
बापू, तुमको शतबार नमन!
बिना युद्ध औ' रक्तपात, बस एक अहिंसा अपनाकर,
जन-शक्ति संगठित की तुमने जन-मानस को आंदोलित कर,
लाठी-गोली-वर्षा सहते, हो गिरफ्तार जेलें भरते
बन गए वीर मतवाले थे भारत-माता की जय करते।
स्वातंत्र्य-यज्ञ के ऋत्विज तुम,
बस होम दिया, निज तन, मन, धन,
बापू, तुमको शतबार नमन!
फिर जग ने देखा शांतिपूर्ण सत्याग्रह का वह चमत्कार,
चर्खे का चक्र चला अविरल था किया विदेशी बहिष्कार
बन गई कृष्ण-मंदिर जेलें इस आज़ादी के दीवानों से,
लगा गूँजने अविरल नभ सब देश-प्रेम की तानों से।
यह नमक-आंदोलन छिड़ता,
यह असहयोग का आंदोलन,
बापू, तुमको शतबार नमन!
था ऊँच-नीच का भेद मिटा, अस्पृश्य घृणित कोई न रहा,
था जाति-पाति का भेद मिटा, सब अपने बेगाना न रहा,
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई मिल सभी राम धुन गाते थे,
सब धर्म-कर्म का भेद मिटा, मिल गले स्वर्ग-सुख पाते थे,
था यही तुम्हारा मधुर स्वप्न,
हो रामराज्य जैसा शासन,
बापू, तुमको शतबार नमन।
तुम दीनों और अनाथों के, दुखियों के एक सहारे थे,
रोगी के लिए मसीहा तुम, जन-मानस को अति प्यारे थे,
तुम शांति-दूत, तुम देव-कल्प, तुम नव-भारत के निर्माता,
तुम-सा समर्थ सेनानी पा यह देश सदा गौरव पाता।
तुम मर कर भी हो गए अमर,
करते जन-जन में आज रमण,
बापू, तुमको शतबार नमन।
-मदन मोहन कमल
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