लाल गुलाब सरीखे बापू
एक फूल से खिल जाते थे
हमजोली वे बन जाते थे
बच्चों के रंग रंग जाते थे
लाल गुलाब सरीखे बापू।
बच्चे उनके राज दुलारे
बच्चे उनके चाँद-सितारे
बच्चों के संग मन मुसकाते
मन के बच्चे सच्चे बापू।
बच्चों से थे हिल-मिल जाते
खिलखिल हँसते और हँसाते
बच्चों में बच्चे बन जाते
बच्चों के संग बच्चे बापू।
जब भी बच्चे कहते बापू
बापू हो जाते बेकाबू
बच्चों के संग घुलमिल जाते
मधु-से मीठे अच्छे बापू।
-गोपीचंद श्रीनागर
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