हे युग पुरुष
हे युग पुरुष हे महा मानव महा यात्री
आए थे करने भारत की भूमि पावन
तुम तिमिर मे रश्मि से आकर हँसे थे
तृषित धरती को मिला जल दान सावन
कर्म के थे चंद्र मोहन दास थे तुम
पतित को पावन बनाने आए थे तुम
आज भी शैशव तुम्हारा झाकता है
पल रहे हो हर लहू मे प्राण बन तुम
दासता घट फोड़ समता को बढ़ाया
श्वेत श्यामल भेद को तुमने मिटाया
हिसको को अहिंसा का ज्ञान देकर
विश्व को बंधुत्व तुमने ही सिखाया
आपकी वाणी रही है गूँज
है चमकता अहिंसा का दीप हिंसा की निशा में
आपकी इस पुण्य पावन जन्म तिथि पर
हो सभी हुलसित बढ़ें उन्नत दिशा में
-भगवत शरण श्रीवास्तव 'शरण'
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