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दो अक्तूबर
यह वही दिवस,
जब भारत में बापू ने जन्म लिया था।
है उन्हें शताधिक नमन!
जिन्हें जग ने सर झुका दिया था।
गोरों के अत्याचारों की कृष्ण निशा जब आई,
पूरे भारत के अंदर, कलुषित विभीषिका छाई,
मेरी स्वतंत्रता का सपना तब लेता था अंगड़ाई,
था व्यापक अमित अँधेरा, पड़ता था कुछ न दिखाई।
रवि-स्पंदन के ध्वज पर भी, तम ने अधिकार किया था
है उन्हें शताधिक नमन!
जिन्होंने तम को दूर किया था।
हम खोज रहे थे उषा, अवसान रात का आए,
भारत-गौरव-गिरिवर पर, ध्वज फिर जग में लहराए।
बन कर के रवि बापू ने, भारत में ज्योति जलाई,
सोते भारत के मन में इक नई चेतना आई।
भूले माँ के लालों को जिसने पथ दिखा दिया था,
है उन्हें शताधिक नमन!
जिन्हें जग ने सर झुका दिया था।
यह वही दिवस है जिस दिन, यह अद्भुत शक्ति मिली थी,
गोरों के बने महल की, तब दृढ़तर नींव हिली थी।
मिट चली कालिमा निशि की, आई इक ज्योति सुहानी,
छिप चले अचानक गोरे रूपी तारे अभिमानी।
निज 'सत्य अहिंसा' बल पर शुचि विमल प्रभात किया था।
है उन्हें शताधिक नमन !
जिन्हें जग ने सर झुका दिया था।
यह वही दिवस, जब चमका भारत का भाग्य सितारा,
दुर्भाग्य अंधेरा खोकर, लाया सौभाग्य उजारा।
हम कैसे भूल सकेंगे अपने नयनों का तारा?
युग-युग तक अमर, रहेगा बापू की जय का नारा!
मँझधार भँवर से भारत को जिसने पार किया था।
है उन्हें शताधिक नमन!
जिन्हें जग ने सर झुका दिया था।
सदियों से बंधी गुलामी का बंधन जिसने खोला,
दृढ़ कर्मवीर बन जिसने, रिपु की ताकत को तोला,
"हम हों स्वतंत्र" का नारा, जिसने घर-घर फैलाया,
यह वही दिवस है जिस दिन वह महाक्रांति बन आया।
"कर्तव्य मार्ग पर बढ़ो" सीख जो हमको सिखा गया था।
है उन्हें शताधिक नमन!
जिन्हें जग ने सर झुका दिया था।
-मदन मोहन शुक्ल 'व्यथित'
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