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बापू! क्यों बंदूक तनी है?
सत्य अहिंसा के अनुगामी, हे मानवता के पथगामी।
द्वेष, दंभ, कटुता का डेरा, हिंसा नित्य लगाती फेरा।
सहमा बैठा कहीं सबेरा, भय, चिंता का गहन अँधेरा।
होती जन, धन की बरबादी, रोके रुके न खून खराबी।
धरती मैया रक्त-सनी है,
बापू! क्यों बंदूक तनी है?
तुमने इस उजड़ी बगिया को, सत्कर्मों के जल से सींचा।
पौध-पौध को प्यार लुटाया, नवल गंध प्राणों में खींचा।
दया, प्रेम का पाठ पढ़ाया, हेल-मेल की राह दिखाई।
फिर भी भाई ही भाई में, भेद-भाव की गहरी खाई।
किसने कोमल फुलवारी में, बोया फिर से नागफनी है?
बापू! क्यों बंदूक तनी है?
हे बच्चों के प्यारे बापू! एक बार फिर से आ जाओ।
हम राहों में भटक गए हैं, अंधकार में ज्योति जगाओ।
लहराए जन-मन की गंगा, फहरे मानवता का परचम।
पंचशील के प्रखर ओज से, हो जाए यह देश चमाचम।
सत्य, अहिंसा, सदाचार का सदियों से यह देश धनी है
बापू क्यों बंदूक तनी है?
-शंकर सुलतानपुरी
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