बापू
ऐसा भी कोई जीवन का मैदान कहीं
जिसने पाया कुछ बापू से वरदान नहीं
मानव के हित जो कुछ भी रखता था माने
बापू ने सबको गिन-गिनकर-
अवगाह लिया।
बापू की छाती की हर साँस तपस्या थी
आती जाती हल करती एक समस्या थी
पल बिना दिए कुछ भेद कहाँ पाया जाने
बापू ने जीवन के क्षण-क्षण को-
थाह लिया।
किसके मरने पर जग भर को पछताव हुआ
किसके मरने पर इतना हृदय-मथाव हुआ
किसके मरने का इतना अधिक प्रभाव हुआ
बनियापन अपना सिद्ध किया सोलह आने
जीने की कीमत कर वसूल पाई-पाई
मरने का भी बापू ने मूल्य-
उगाह लिया।
-अज्ञात
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