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         आज लगा


आज लगा बाकी दिन
कितने रूखे हैं

अँगनाई अगियार करेगी पुरखों की
गुड़-घी की मन्नत है, उनकी बरसों की
चन्दा मामा जल्दी लड़ियाँ टाँग रहे
दीवट-ताखों के मुँह
सूखे-सूखे हैं

चौक पूरने सरयू का जल आया है
त्रेता से बेड़िया गागर भर लाया है
गौरा सतिया रचती देहरी देख रही
पुए पूर के दिये
बिचारे भूखे हैं

पनपियाव में खील बताशे गट्टे हैं
रेहू ने रेहुआये लक-दक लत्ते हैं
पिढ़ई अक्षत-हल्दी से कनफुसक रही
लछमी मइया कितनी
लछमी 'मूखे हैं।

- विनय विक्रम सिंह मनकही
१ नवंबर २०२४
 

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